Wednesday, August 5, 2020

असली राम कौन है



राम कौन है...??

रामचन्द्र भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचंद्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन के अनुसार अयोध्या के सूर्यवंशी राजा, चक्रवर्ती सम्राट दशरथ ने पुत्र की कामना से यज्ञ कराया जिसके फलस्वरूप उनके पुत्रों का जन्म हुआ। श्रीराम का जन्म देवी कौशल्या के गर्भ से अयोध्या में हुआ था। श्रीराम जी चारों भाइयों में सबसे बड़े थे। हर वर्ष चैत्र मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को श्रीराम जयंती या राम नवमी का पर्व के रूप में भी मनाया जाता है।
परन्तु दशरत पुत्र राम जिनको हम भगवान मान कर पूजते हैं वो खुद जन्म-मृत्यु में आते हैं जिनकी भक्ति करने से हमे पूर्ण मोक्ष व लाभ प्राप्त नही हो सकता। नारदमुनि ने विष्णु जी को श्राप दिया था कि जैसे ,” मैं एक स्त्री के वियोग में जल रहा हूं आपको भी पूरा एक जीवन स्त्री वियोग में बिताना पड़ेगा।” नारद जी के श्राप के कारण ही राम को पृथ्वी पर त्रेतायुग में आना पड़ा कर्म फल भोग कर अपना जीवन पूर्ण किया।

                              Is the Ram Setu real

असली राम (आदि राम) कौन है?

जब तक हमें आदिराम की जानकारी नहीं होगी, जो हमारे धर्म ग्रंथों में वर्णित है, हमें कोई लाभ नहीं मिल सकता, केवल पूर्व जन्मों के आधार पर ही हम सुख- दुख भोगते हैं। वेदों, शास्त्रों तथा धर्म ग्रंथों के अनुसार पूर्ण परमात्मा तो कोई और है तथा राम जी भगवान नहीं केवल विष्णु जी के अवतार थे, जिन्होंने कर्म आधार पर मनुष्य जन्म प्राप्त किया तथा बहुत कष्ट झेले। जब वह खुद अपने ऊपर आई आपत्तियों को नहीं रोक पाए तो उनको पूजने वालों के कष्टों को किस प्रकार दूर कर सकते हैं।

असली राम (आदि राम), अनश्वर, अविनाशी परमात्मा है जो सब का पालनहार पिता है। जिसके एक इशारे पर‌ धरती और अंबर काम करते हैं जिसकी स्तुति में तैंतीस करोड़ देवी-देवता नतमस्तक रहते हैं। मौत जिसके चरणों की दासी है। जो मोक्षदायक है। जो माता-पिता से जन्म नहीं लेता। जो स्वयंभू है। वो कबीर परमेश्वर ही असली आदि राम है जो  जन्म-मृत्यु से परे है

                        Who is real Ram in Ramayan?

आदिराम (पूर्ण परमात्मा) कौन है?

हमारे धर्म ग्रंथों से यह प्रमाणित है कि पूर्ण परमात्मा मां के गर्भ से जन्म नहीं लेता। परंतु राम भगवान का जन्म मां के गर्भ से हुआ और उनकी मृत्यु सरयू नदी में समाधि लेने के कारण हुई थी। जबकि पूर्ण परमात्मा ना तो मां के गर्भ से जन्म लेता है और न ही उसकी मृत्यु होती है।

राम राम सब जगत बखाने आदि राम कोई बिरला जाने ।

एक राम दशरथ का बेटा एक राम घट घट में बैठा।

एक राम का सकल पसारा एक राम इस जगत से न्यारा।।

सिर्फ राम राम कहने से कुछ नही होगा जब तक आपको असली " राम " की जानकारी नही है।

असली ( अविनाशी) राम को सह प्रमाण जाने....!!

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मंत्र 17 में कहा है कि कविर्देव शिशु रूप धारण कर लेता है। लीला करता हुआ बड़ा होता है। कविताओं द्वारा तत्वज्ञान वर्णन करने के कारण कवि की पदवी प्राप्त करता है अर्थात् उसे कवि कहने लग जाते हैं, वास्तव में वह पूर्ण परमात्मा कविर् (कबीर प्रभु) ही है। उसके द्वारा रची अमृतवाणी कबीर वाणी (कविर्गिरः अर्थात् कविर्वाणी) कही जाती है, जो भक्तों के लिए स्वर्ग तुल्य सुखदाई होती है। वही परमात्मा तीसरे मुक्ति धाम अर्थात् सतलोक की स्थापना करके एक गुबंद अर्थात् गुम्बज में सिंहासन पर तेजोमय मानव सदृश शरीर में आकार में विराजमान है।

                            lord rama death age

ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 1 मंत्र 9 तथा सूक्त 96 मंत्र 17 से 20 में भी उस पूर्ण परमात्मा के धरती पर सहशरीर अवतरित होने का उल्लेख है।

पूर्ण परमेश्वर कबीर साहिब की पूर्ण जानकारी प्राप्त करने के लिए हमें पूर्ण गुरु के क्षरण ग्रहण करनी होगी।  पूर्ण गुरु ही हमें असली आदि राम की पूर्ण जानकारी प्रदान कर सकता है कबीर साहेब जी कहते हैं


राम कृष्ण से कौन बड़ा, तिन्हू भी गुरु कीन।
तीन लोक के वे धनी, गुरु आगे आधीन।।

पूर्ण संत की जानकारी गीता जी के अध्याय नंबर 15 के मंत्र नंबर 1 से 4 के अनुसार..!

वह पूर्ण संत संसार रूपी उल्टे लटके हुए पीपल के वृक्ष की संपूर्ण जानकारी सह वेद वित जड़ से तनों तक भगत समाज को प्रदान करेगा।

ऊर्ध मूलम्ं अध: शाखाम् अश्वथामम् अव्यवम्।
छंदासि यस्य पर्णामि यह तम वेद सहवेदविद् ।

यजुर्वेद अध्याय 19 के मंत्र 25

वह तत्वदर्शी संत सभी धर्मों के पवित्र सदग्रंथों के गूढ़ रहस्यों को भगत समाज के समक्ष प्रमाण सहित बताएगा।

अर्द्ध ऋचैः उक्थानाम् रूपम् पदैः आप्नोति निविदः।
प्रणवैःशस्त्राणाम् रूपम् पयसा सोमः आप्यते।

अर्थात जो संत महापुरूष वेदों के अधूरे वाक्यों और संकेतात्मक रहस्यों की जानकारी प्रमाण सहित करेगा और शास्त्रों के आधार से प्रमाण सहित ज्ञान भगत समाज तक प्रस्तुत करेगा, वही तत्वदर्शी संत होगा।

वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज वह पूर्ण संत है जो सभी भक्त समाज को शास्त्र अनुकूल, शास्त्र प्रमाणित साधना भक्ति देखकर सभी मानव समाज का कल्याण कर रहे हैं तथा जन्म-मृत्यु के धीरग रोग से मुक्त करवा कर पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति करवा रहे हैं अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 pm

Wednesday, July 15, 2020

महामारी | Pandemic

 हर 100 साल में होता है महामारी का हमला...!!

 कहा जाता है कि चार सौ सालों में हर सौ साल बाद एक ऐसी महामारी आती है, जिसने पूरी दुनिया में तबाही मचाई। हर सौवें साल आने वाली इस महामारी ने दुनिया के किसी कोने को नहीं छोड़ा। करोड़ों इंसानों की जान लेने के साथ-साथ इसने कई इंसानी बस्तियों के तो नामो-निशान तक मिटा दिए।


An pandemic every 100 years
                 An pandemic every 100 years



दुनिया में हर 100 साल पर 'महामारी' का हमला हुआ है। सन् 1720 में दुनिया में द ग्रेट प्लेग आफ मार्सेल फैला था। जिसमें 1 लाख लोगों की मौत हो गई थी 100 साल बाद सन् 1820 में एशियाई देशों में हैजा फैला उसमें भी एक लाख से ज़्यादा लोगों की मौत हो गई थी इसी तरह सन् 1918-1920 में दुनिया ने झेला स्पेनिश फ्लू का क़हर इस बीमारी ने उस वक्त करीब 5 करोड़ लोगों को मौत की नींद सुला दिया था। और अब फिर 100 साल बाद दुनिया पर आई कोरोना की तबाही जिसकी वजह से पूरी दुनिया में लॉक डाउन है। चारों तरफ हाहाकार मचा हुआ है।

an pandemic every 100 years
                    Plague 1720 Pandemic

सन 1820 ग्रेट प्लेग ऑफ मार्सिले के पूरे 100 साल बाद एशियाई देशों में कॉलरा यानी हैजा ने महामारी का रूप लिया। इस महामारी ने जापान, अरब देशों, भारत, बैंकॉक, मनीला, जावा, चीन और मॉरिशस जैसे देशों को अपनी जकड़ में ले लिया। हैजा की वजह से सिर्फ जावा में 1 लाख लोगों की मौत हुई थी। जबकि सबसे ज्यादा मौतें थाईलैंड, इंडोनेशिया और फिलीपींस में हुई थी।

Cholera 1820 | pandemic
                 Cholera 1820 Pandemic

सन 1920 करीब 100 साल बाद धरती पर फिर तबाही आई। इस बार ये तबाही स्पैनिश फ्लू की शक्ल में आई थी। वैसे ये फ्लू फैला तो 1918 से ही था। लेकिन इसका सबसे ज्यादा असर 1920 में देखने को मिला। कहा जाता है कि इस फ्लू की वजह से पूरी दुनिया में दो से 5 करोड़ के बीच लोग मारे गए थे।

pandemic
                  Spanish Flu 1920 Pandemic
               

सन 2020 अब फिर पूरे 100 साल बाद इंसानियत को खतरे में डालने कोरोना वायरस की शक्ल में एक और महामारी आई है। साल की शुरुआत में चीन से शुरु होकर अब ये महामारी पूरी दुनिया में फैल चुकी है। फिलहाल लाखों इसकी जद में हैं और हज़ारों मारे जा चुके हैं। इतिहास की बाकी बीमारियों की तरह वक्त रहते इसकी भी कोई वैक्सीन खोजी नहीं जा सकी है। और जब तक ये वैक्सीन तैयार होगी तब तक ना जाने कितनी देर हो चुकी होगी।

pandemic | covid-19
                             coronavirus

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने अब कोरोना वायरस को पैनडेमिक यानी महामारी घोषित कर दिया है।

अब से पहले डब्ल्यूएचओ ने कोरोना वायरस को महामारी नहीं कहा था।

महामारी उस बीमारी को कहा जाता है जो एक ही समय दुनिया के अलग-अलग देशों में लोगों में फैल रही हो।

डब्ल्यूएचओ के अध्यक्ष डॉ. टेडरोज़ आध्यनोम गेब्रेयेसोस ने कहा है कि वो अब कोरोना वायरस के लिए महामारी शब्द का इस्तेमाल कर रहे हैं क्योंकि वायरस को लेकर निष्क्रियता चिंताजनक है।

इससे पहले साल 2009 में स्वाइन फ्लू को महामारी घोषित किया गया था। विशेषज्ञों के मुताबिक स्वाइन फ्लू की वजह से कई लाख लोग मारे गए थे।

महामारी होने की अधिक संभावना तब होती है जब वायरस बिलकुल नया हो, आसानी से लोगों में संक्रमित हो रहा हो और लोगों के बीच संपर्क से प्रभावी और निरंतरता से फैल रहा हो।

कोरोना वायरस इन सभी पैमानों को पूरा करता है।

अभी तक कोरोना वायरस का कोई इलाज या टीका नहीं है। वायरस के विस्तार को रोकना ही सबसे अहम है। जिसकी शुरुआत हमे आध्यात्मिक मार्ग की ओर बढ़ कर करना होगा।

 संत रामपाल जी महाराज के अनुयाई जो दावा कर रहे हैं वह पूर्णतया सत्य है। संत रामपाल जी ही कोरोना महामारी से बचा सकते हैं। पूर्ण सन्तों के कुछ नियम और मर्यादाएं होती हैं उसका पालन करने पर दया बक्शीश होती हैं। जब तक उन्हें पुकारा नहीं जाता प्रार्थना नहीं की जाती तब तक पूर्ण संत दया नहीं करते। जिस प्रकार द्रोपदी ने चीरहरण में अपना बचाव नहीं देखकर अन्त में अपने गुरु/परमात्मा को याद किया तब परमात्मा की दया‌ बख्शीश हुई, लाज बची। राज्याभिषेक के बाद जब पांडवों का यज्ञ सफल नहीं हुआ तब श्रीकृष्ण समेत पांचों पांडव नंगे पैर चलकर संत सुपच सुदर्शन से जाकर यज्ञ में चलने की प्रार्थना की तब उनके भोजन करने से यज्ञ संपन्न हुआ और संख बजा। इसी प्रकार पूर्ण संत से आधीनी से प्रार्थना विनती करने पर वह बड़ी से बड़ी आपदाओं को भी टाल देते है।

दूसरा प्रमाण संत रामपाल जी महाराज लाखों अनुयायियों के सभी तरह के दुख कष्ट और असाध्य रोगों को सत् भक्ति से काट रहे हैं। कैंसर एड्स जैसी घातक बीमारियां भी पूर्णतया ठीक हो गई है जिसका प्रत्यक्ष प्रमाण आपजी YouTube पर Real Story Saint Rampal Ji search करके चेक कर सकते है।


Saint rampal ji can end corona pandemic
Saint rampal ji can end corona pandemic

विश्व पर आए हुए इस महामारी रूपी संकट से मानव जाति को बचाने के लिए संत रामपाल जी महाराज से प्रार्थना विनय किया जाए। हम आपको भरोसा दिलाते हैं इस महामारी से वह देश और दुनिया को बचा सकते हैं।

अवश्य सुनिए आध्यात्मिक तत्वज्ञान संदेश।

साधना चैनल - 7:30pm.


Tuesday, July 7, 2020

विज्ञान और ज्ञान में अंतर

 विज्ञान और ज्ञान में क्या अंतर है?
विज्ञान का सीधा-सा अर्थ है वस्तुओं की तमाम जानकारी प्राप्त करना । ज्ञान का अर्थ है मानवीय मूल्यों के अनुरूप चिंतन करना ओर चरित्र के लिए आस्थावान बनना है।

Importance of scientific knowledge
Knowledge and science

कहा जाता हैं कि मनुष्य जन्म से ही पशु प्रवृतियां परिपूर्ण होता है, लेकिन इन अवगुणों का नाश करके संस्कारी और आदर्शवादी बनने की चिंतन प्रक्रिया को ही ज्ञान कहा गया है।



विज्ञान का सीधा-सा अर्थ है-वस्तुओं की तमाम जानकारी हासिल करना। यदि ज्ञान को समझें तो ज्ञान का मतलब मानवीय मूल्यों के अनुरूप चिंतन करना और चरित्र के लिए आस्थावान बनना है। कहते हैं कि मनुष्य में जन्मजात पशु प्रवृत्तियां भरी होती हैं, लेकिन इन अवगुणों का नाश करके संस्कारी और आदर्शवादी बनाने की चिंतन प्रक्रिया को ज्ञान कहा गया है। अब अगर ज्ञान और विज्ञान की आपस में तुलना करें तो वह कुछ ऐसी होगी। हाइड्रोजन के दो कण जब ऑक्सीजन के संपर्क में आते हैं तो पानी बनता है-यह विज्ञान है, लेकिन इस पानी से जीव-जंतुओं की प्यास बुझती है-यह ज्ञान है।

What is science
What is science


ज्ञान और विज्ञान की तुलना

अब अगर ज्ञान और विज्ञान की आपस में तुलना करें तो वह कुछ ऐसी होगी – “हाइड्रोजन के दो कण जब ऑक्सीजन के संपर्क में आते हैं तो पानी बनता है-यह विज्ञान है, लेकिन इस पानी से जीव-जंतुओं की प्यास बुझती है-यह ज्ञान है।”

ज्ञान का सामान्य बोलचाल की भाषा में अर्थ है- जानकारी, पर हर तरह की जानकारी ज्ञान नहीं मानी जाती। ज्ञान और विज्ञान के दर्शन पर आजकल अनेक सिद्धांत चल पड़े हैं, जो केवल यह परिभाषित करने का प्रयास करते हैं कि किस प्रकार की जानकारी ज्ञान के अंतर्गत आती है और किस प्रकार की जानकारी ज्ञान के दायरे से बाहर है।

ज्ञान के कुछ धुरंधर दार्शनिकों के नाम हैं- प्लेटो, रिचर्ड रोरटी, बर्टरैंड रसेल इत्यादि।

उसी प्रकार विज्ञान क्या है और क्या नहीं, इसे परिभाषित करने के लिये अनेक महापुरुषों ने अपना जीवन लगा दिया जिनमें से कुछ हैं- कोपरनिकस, कॉमटे, एमैनुअल कान्ट, कार्ल पॉपर और टॉमस कुह्न।

विज्ञान – विज्ञान के जनक, परिभाषा – Science
ज्ञान के क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन को ही विज्ञान (Science) कहते हैं। वस्तुओं के इस अध्ययन को क्रमबद्ध तरीके से अध्ययन किया जाता है और तथ्य इक्कठे किये जाते है इन तथ्यों के आधार पर ही वस्तु के गुण और प्रकृति का पता लगाया जाता है।

विज्ञान की परिभाषा..!!

प्रकृति में उपस्थित वस्तुओं के क्रमबद्ध अध्ययन से ज्ञान प्राप्त करने और उस ज्ञान के आधार पर वस्तु की प्रकृति और व्यवहार जैसे गुणों का पता लगाने को ही विज्ञान कहते है।

ज्ञान...!!
What is knowledge
What is knowledge

ज्ञान का अर्थ (meaning of knowledge)

'ज्ञान' शब्द  'ज्ञ' धातु से बना है जिसका अर्थ जानना, बोध,अनुभव, प्रकाश से माना गया है। आसान शब्दों में कहा जाए तो किसी वस्तु के स्वरूप का जैसा है वैसा ही बोध, अनुभव होना ज्ञान है।  इसे हम उदाहरण से समझ सकते हैं - यदि हमें दूर से पानी दिखाई दे रहा है निकट जाने पर भी पानी मिलता है तो कहा जाएगा कि हमें अमुक जगह पानी होने का 'वास्तविक ज्ञान' हुआ।

वैसे ही हम आद्यात्मिक ज्ञान की बात करे तो। ज्ञान के साथ आध्यात्मिक ज्ञान होना भी अति आवश्यक है कहा जाता है कि, मन को आत्मा के साथ जोड़ना ही आध्यात्मिक ज्ञान है
मन आत्मा से तभी जुड़ सकता है जब मनुष्य को पूर्ण आध्यात्मिक ज्ञान की जानकारी होगी। आद्यात्मिक ज्ञान की जानकारी तभी प्राप्त हो सकती है जब पूर्ण संत यानी (पूर्ण गुरु) की प्राप्ति होगी। क्योकि पूर्ण संत ही सही आद्यात्मिक मार्ग की जानकारी दे सकता है।


पूर्ण संत वही है जो संसार रूपी वृक्ष के ऊपर को मूल तथा नीचे को तीनों गुण(रजगुण-ब्रह्म जी, सतगुण-विष्णु जी तथा तमगुण शिवजी) रूपी शाखाओं तथा तना व मोटी डार की पूर्ण जानकारी प्रदान करता है
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज जी वह पूर्ण संत है सही आध्यात्मिक मार्ग की जानकारी दे रहे हैं
गीता अध्याय 15 श्लोक 4 में कहा है कि तत्वदर्शी संत की प्राप्ति के पश्चात् उस परमपद परमेश्वर(जिसके विषय में गीता अध्याय 18 श्लोक 62 में कहा है) की खोज करनी चाहिए। जहां जाने के पश्चात् साधक पुनर् लौटकर वापिस नहीं आता अर्थात् पूर्ण मोक्ष प्राप्त करता है।
 कबीर परमेश्वर जी वह पूर्ण परमेश्वर है जिनकी शास्त्र अनुकूल पूर्ण संत से नाम उपदेश लेकर साधना भक्ति करने से पूर्ण लाभ व मोक्ष की प्राप्ति होती है।
Satsang channel

अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखें साधना चैनल रात्रि 7:30 pm

Wednesday, July 1, 2020

भक्ति करना क्यों आवश्यक है

मनुष्य जीवन प्राप्त होने के उपरांत भक्ति करना अति आवश्यक है। क्योकि?

 हम सभी जीवो को नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा है अर्थात उसी का स्वरूप है अन्य प्राणियों को यह सुंदर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर जीव को 84 लाख योनियों वाले चक्र में जाना पड़ता है।

Importance of bhakti
Importance of bhakti


 भक्ति करना क्यों ज़रूरी है?

 मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्ची भक्ति ज़रूरी है।

 भक्ति से आर्थिक मानसिक और शारीरिक सुख होता है। इसलिए भक्ति करना ज़रूरी है।

 सत भक्ति करने से अहंकार से दूर होकर मनुष्य नेक इंसान बन कर सुखी जीवन व्यतीत करता है।

 पूर्ण गुरु से नाम उपदेश लेकर मर्यादा में रहते हुए आजीवन सत भक्ति करने से ही सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष मिलता है।

 भक्ति करने से आने वाली आपदाएं दूर होती हैं।

 भक्ति करने से हमारे अंदर आत्म संतोष आता है ।

Importance of bhakti
Importance of true worship

 संत गरीबदास जी महाराज बताते हैं

यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।


नर-नारायण देहि पाय कर, फेर चैरासी जांही।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रह के नांही।।

जा सतगुरू की मैं बलिहारी, जो जामण मरण मिटाहीं।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला, मसलित एक ठहराहीं।
बाँध पींजरी आगै धर लिया, मरघट कूँ ले जाहीं।।


अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठाहीं।
पुराण उठा फिर पण्डित आए, पीछे गरूड पढाहीं।।


 भावार्थ:- यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाऐंगे। उसी दिन यह शरीर रूपी पिण्ड छूट जाएगा। फिर परमात्मा के दरबार में पाप-पुण्यों का हिसाब होगा। भक्ति न करने वाले या शास्त्राविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाऐंगे, चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो, उसकी पिटाई की जाएगी। सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे। सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल बयान कर रहे हैं कि:- हे मानव! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है। अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर चैरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है, धिक्कार है तेरे मानव जीवन को! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है, डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं। मैं तो भक्ति करते-करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए। आप तो भक्ति ही नहीं करते। यदि करते हो तो शास्त्राविरूद्ध कर रहे हो। तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म-मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे, समाप्त कर दे। जो सत्य भक्ति नहीं करते, उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात्। आस-पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। फिर सबकी एक ही मसलत अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ। (उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूँक देते हैं, लाठी या जैली की खोद (ठोकर) मार-मारकर छाती तोड़ते हैं। सम्पूर्ण शरीर को जला देते हैं। जो कुछ भी जेब में होता है, उसको निकाल लेते हैं। फिर शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं।

Importance of bhakti
                       power of bhakti


 तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीव चला गया। परमात्मा के दरबार में उसका हिसाब होगा। वह कर्मानुसार कहीं गधा-कुत्ता बनने की पंक्ति में खड़ा होगा। मृत्यु के पश्चात् गरूड पुराण का पाठ उसके क्या काम आएगा। यह व्यर्थ का शास्त्राविरूद्ध क्रियाक्रम है। उस प्राणी का मनुष्य शरीर रहते उसको भगवान के संविधान का ज्ञान करना चाहिए था। जिससे उसको अच्छे-बुरे का ज्ञान होता और वह अपना मानव जीवन सफल करता।



जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।

 सन्त गरीब दास ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में आगे कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो उपरोक्त सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते। अमरपुरी पर आसन होता अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित सनातन परम धाम प्राप्त होता, परम शान्ति प्राप्त हो जाती। फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मरण का कष्टदायक चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता। उस अमर लोक (सत्यलोक) में धूप-छाया नहीं है अर्थात् जैसे धूप दुःखदाई हुई तो छाया की आवश्यकता पड़ी। उस सत्यलोक में केवल सुख है, दुःख नहीं है।

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the real aim of true worshipaim


 वर्तमान में पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज एकमात्र पूर्ण संत है जो शास्त्र अनुकूल सही साधना भक्ति बताकर मानव समाज का कल्याण कर रहे हैं उनके द्वारा बताई गई भक्ति मर्यादा में रहकर करने से इस लोक में तथा परलोक में सुख एवं पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30pm तक

Wednesday, June 24, 2020

नास्तिको का देश चीन

आखिर चीन किसी धर्म को क्यो नही मानता, क्यो है नास्तिक ??

चीन आधिकारिक तौर पर एक नास्तिक देश है चीनी मान्यता के अनुसार इंसान और भगवान के बीच श्रद्धा का कोई सिद्धांत नहीं है यहां भगवान के अस्तित्व को नहीं माना जाता साथ ही भगवान के अस्तित्व को पूर्णता नकार दिया जाता है यहां के लोग किसी भी ईश्वर में विश्वास नहीं रखते वही खुद को अधार्मिक व नास्तिक मानते हैं

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चीन सरकार का मानना है कि धार्मिक आस्था वामपंथ को कमजोर करती है चीन के पहले कम्युनिस्ट नेता माओत्से तुंग ने ही धर्म को नष्ट करने की कोशिश की थी उन्होंने नास्तिक वाद को बढ़ावा दिया था।

 हालांकि पिछले कुछ सालों से यहां धार्मिक गतिविधियां बढ़ी है चीन का संविधान वैसे तो किसी भी धर्म को मानने की आजादी देता है इसके बावजूद चीन में धर्म के रास्ते में कई पाबंदियां है
यहाँ केवल 5 धर्मों को मान्यता देता है जिसमें बौद्ध, कैथोलिजम, डाओजिम, इस्लाम और प्रोटेस्टैंटिजम शामिल हैं इनके अलावा किसी अन्य धर्म के क्रियाकलापों पर लगभग बैन है धार्मिक संगठनों को राज्य स्वीकृत इन 5 धर्मों में से किसी एक के साथ रजिस्टर करना होता है
चीनी लोगों द्वारा बौद्ध धर्म को अधिक बढ़ावा दिया गया है चीनी नेताओं द्वारा बौद्ध धर्म का अधिक प्रचार-प्रसार किया है उनका मानना है बौद्ध धर्म अपनाकर चारों तरफ शांति स्थापित की जा सकती है परन्तु।

क्या बौद्ध धर्म को मानने से मोक्ष सम्भव है ??

 महात्मा बुद्ध के पास मानव कल्याण का रास्ता नही था महात्मा बुद्ध द्वारा बताई गई साधना शास्त्र विरुद्ध थी जिसके चलते महात्मा बुद्ध के अनुयायियों को किसी प्रकार का लाभ प्राप्त नहीं होने के कारण नास्तिक होते चले गए वहीं चीनी लोगो द्वारा निर्दोष बेजुबान जानवरों की निर्मम हत्या करके उन्हें खाया जाने लगा। तथा वहां के लोगों में दया, ममता किसी भी जीव के प्रति सहानुभूति पूर्णतया समाप्त होने लगी।

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 और यह सब इसलिए हुआ क्योंकि सही भक्ति मार्ग व पूर्ण परमेश्वर की प्राप्ति नहीं होने के कारण व्यक्ति भक्ति मार्ग से भटक जाता है उसे सही गलत की जानकारी नहीं होने के कारण पाप का भागी बनता चला जाता है

महात्मा बुद्ध जिनको चीनी लोग भगवान मानकर पूजते रहे उन्हें स्वयं यथार्थ भक्ति मार्ग की जानकारी नहीं थी महात्मा बुद्ध स्वयं भगवान प्राप्ति के लिए घर त्याग कर कई वर्षों तक गया (बिहार) में वट वृक्ष के नीचे बैठकर हठयोग साधना की जो कि शास्त्र विरुद्ध साधना थी

 गीता जी (अध्ययन 17 श्लोक 5) में हठयोग करने के लिए साफ मना किया गया हैं।
मतलब साफ है सहयोग करने से हमारा पूर्ण मोक्ष संभव नहीं है पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति के लिए पूर्ण संत से नाम उपदेश लेकर सत साधना करनी होगी तभी संभव है जबकि बुद्ध के कोई गुरु नही थे और बिना गुरु के मोक्ष कभी नही हो सकता ।

कबीर साहेब जी कहते हैं
    गुरू बिन माला फेरते, गुरू बिन देते दान।
    गुरू बिन दोनों निष्फल है, पूछो वेद पुराण।।

    राम कृष्ण से कौन बड़ा, उन्हों भी गुरू कीन्ह।
    तीन लोक के वे धनी, गुरू आगे आधीन।।
Country of atheistc's. China

 चीन का नास्तिक होने की के पीछे का मूल कारण यही है कि चीनी लोगों को सही मार्गदर्शक व सही भक्ति मार्ग नहीं मिलने के कारण आज वहां के लोग नास्तिक हो गए । वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज सही शास्त्र अनुकूल सत भक्ति बता रहे हैं जिसको करने से पूर्ण लाभ व पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति सम्भव है

अधिक जानकारी के लिए जरूर देखें साधना tv पर शाम 7:30 से 8:30 pm





Wednesday, June 17, 2020

Janmastami:lord krishna

                     Lord krishna

आज हम बात कर रहे हैं जन्माष्टमी के बारे में ।

कृष्णजन्माष्टमी भगवान श्री कृष्ण का जनमोत्सव के रूप में मनाया जाता है जन्माष्टमी भारत ही नहीं अपितु विदेशों में बसे भारतीय भी बड़े उत्साह व उल्लास के साथ मनाते हैं भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को मध्यरात्रि को श्रीकृष्ण जी ने जन्म लिया। इसलिए इस दिन को कृष्ण जन्माष्टमी के रूप में मनाया जाता है इससे स्पष्ट है कि श्री कृष्णा जी ने मां के गर्भ से जन्म लिया। अवतरित नही हुए जबकि कहां जाता है कि भगवान कभी भी मां के गर्भ से जन्म नहीं लेते हैं  सीधे पृथ्वी पर अवतरित होते हैं जबकि श्री कृष्ण जी ने मां के गर्भ से जन्म दिया फिर वह पूर्ण परमेश्वर कैसे हो सकते हैं।
Janmashtami
Lord krishna

वहीं दूसरी तरफ हम बात करें कबीर साहेब की उन्होंने मां के गर्भ से जन्म नहीं लिया बल्कि अपने निजी स्थान सतलोक से चलकर आए और अपनी पुण्यात्मा को मिले, अनेको लीलाएं की।

 वही हिंदू धर्म के लोग श्री कृष्ण जी को वासुदेव नाम से भी पुकारते हैं या संबोधित करते हैं जबकि असली वासुदेव कोई और हैं जोकि सर्व कष्ट निवारक है

“वासुदेव की परिभाषा”
गीता अध्याय 3 श्लोक 14.15 में कहा है कि सम्पूर्ण प्राणी अन्न से उत्पन्न
होते है।
ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष की उत्पत्ति अविनाशी परमात्मा से
हुई है जिसके विषय में गीता अध्याय 15 श्लोक 17 में कहा है। इससे सिद्ध है कि
“सर्वगतम् ब्रह्म” = सर्वव्यापी परम अक्षर ब्रह्म अर्थात् वासुदेव सदा ही यज्ञों में
प्रतिष्ठित है।
विचार करें :- सर्वगतम् ब्रह्म का अर्थ है सर्वव्यापी परम अक्षर परमात्मा।
(गीता अध्याय 3 श्लोक 15)
1. श्री ब्रह्मा जी, श्री विष्णु जी तथा श्री शिव जी तीनों देवता एक ब्रह्माण्ड
में बने तीनों लोकों (स्वर्ग लोक, पृथ्वी लोक, पाताल लोक) में केवल एक-एक
विभाग अर्थात् गुण के प्रधान हैं। ये सर्वगतम् ब्रह्म अर्थात् सर्वव्यापी परमात्मा =
वासुदेव नहीं हैं।
2. ब्रह्म अर्थात् क्षर पुरूष :- यह केवल 21 ब्रह्माण्डों का प्रभु है। यह भी
सर्वव्यापी अर्थात् वासुदेव नहीं है।
3. अक्षर पुरूष :- यह केवल 7 शंख ब्रह्माण्डों का प्रभु है, यह भी सर्वव्यापी
अर्थात् वासुदेव नहीं है।
4. परम अक्षर ब्रह्म :- यह सर्व ब्रह्माण्डों का स्वामी है, सर्व का धारण-पोषण
करने वाला है, यह वासुदेव है।
परम अक्षर ब्रह्म ( कबीर परमेश्वर) स्वयं पृथ्वी
पर प्रकट होकर अच्छी आत्माओं को मिलते हैं। उनको तत्वज्ञान बताते हैं।
Janmastami ,Janmashtami
                           Janmastami

हम लोग श्री कृष्ण जी को भगवान मान बैठे हैं क्योकि श्री कृष्ण जी ने मोरध्वज राजा के पुत्र ताम्रध्वज को आरे से दो भाग करवा कर जो की मृत्यु को प्राप्त हो चुका था उसको जीवित कर दिया उसके उपरांत हमने श्री कृष्ण जी को भगवान मान बैठे। परन्तु हमारे शास्त्र प्रमाणित करते हैं कि श्री कृष्ण जी द्वारा किसी व्यक्ति की आयु शेष बची हो उसको ही जीवित कर सकते हैं आयु घटा या बड़ा नहीं सकते। जबकि पूर्ण परमेश्वर कबीर साहिब जी द्वारा जिनकी आयु शेष नहीं भी बची हो उसको भी जीवन दान प्रदान कर सकते हैं साथ ही उस आयु बढ़ा या घटा सकते हैं

ऐसे ही श्री कृष्ण जी ने एक मुट्ठी चावल के बदले सुदामा का महल बनवाया था वही अगर बात करे परमेश्वर कबीर साहिब जी की तो उन्होंने एक रोटी के बदले तैमूर लंग को सात पीढ़ी का राज दिया।
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Janmastami

यह धारणा की द्रोपती की साड़ी श्री कृष्ण जी ने बढ़ाई थी यह आधा अधूरा सत्य है सत्य तो यह हैं की उस समय श्री कृष्ण जी रुक्मणी के साथ चोसर खेल रहे थे परमेश्वर कबीर जी ने द्रौपदी की भक्ति की लाज रखी और द्रोपती की साड़ी चीर बढ़ाया जिसकी जानकारी आज तक किसी भी हिन्दू धर्म के धर्मगुरु को नहीं थी सब को यही लगता था कि श्री कृष्ण जी ने द्रौपती का चीर बढ़ाया।

गीता अध्याय 7 श्लोक 12 से 15 तक तो गीता ज्ञान दाता ने तीनों गुणों (रजगुण ब्रह्मा जी, सतगुण विष्णु जी तथा तमगुण शिव जी) की भक्ति करने वाले
1. राक्षस स्वभाव को धारण किए हुए, 2. मनुष्यों में नीच, 3. दूषित कर्म करने वाले,
4. मूर्ख मेरी भक्ति भी नहीं करते।
फिर गीता ज्ञान दाता ने गीता अध्याय 7 श्लोक 16 से 18 तक अपनी साधना
करने वालों की स्थिति बताई है कि मेरी भक्ति चार प्रकार के (1. आर्त, 2. अथार्थी, 3. जिज्ञासु, 4. ज्ञानी) करते हैं। इनमें केवल ज्ञानी साधक श्रेष्ठ बताया, परंतु वह
भी तत्वज्ञान न होने के कारण मेरे वाली अर्थात् ब्रह्म की अनुतम् अर्थात् घटिया गति में ही स्थित रह गया।
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                   Krishna janmastami

श्रीमद भगवद गीता अध्याय 18 के श्लोक 62 में गीता ज्ञान दाता अर्जुन से कह रहा है कि सर्वश्रेष्ठ शक्तिशाली परमेश्वर तो कोई और है उसकी शरण ग्रहण करो।
जिस सर्वश्रेष्ठ परमेश्वर के बारे में गीता ज्ञान दाता कह रहा है वह परमेश्वर कोई और नही कबीर परमेश्वर जी हैं जो सर्व शक्तिशाली प्रभु है जिनकी भक्ति करने से इस लोक तथा परलोक में सुख व पूर्ण मोक्ष प्राप्त हो सकती हैं अधिक जानकारी के लिए देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 pm से 8:30 pm तक

Wednesday, June 10, 2020

Holy Bible

पवित्र बाइबल के अनुसार परमेश्वर कौन है जिसने संपूर्ण सृष्टि की रचना की.....!!!



सभी सद्ग्रंथो में एक ही साकार व् समर्थ पूर्ण परमात्मा के बारे में वर्णन है, पवित्र बाईबल में भी स्पष्ट रूप से वर्णित है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की। इससे सिद्ध है कि पवित्र बाइबिल के अनुसार भी परमेश्वर साकार है मनुष्य सदृश्य है।

प्रमाण के लिए देखिये - उत्पति ग्रन्थ पृष्ठ न:2 पर अ, 1:20-2:5 पर।


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यीशु पूर्ण परमात्मा नहीं है पवित्र बाइबिल में प्रमाण है यीशु भगवान नहीं भगवान के पुत्र थे।

पवित्र बाईबल में प्रभु किसी ओर को बताया है जो मानव सदृश साकार है प्रमाण के लिए देखे उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1:20 - 2:5 पर।



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 बाइबल के अनुसार परमेश्वर कौन है



पवित्र बाईबल में प्रभु मानव सदृश साकार का प्रमाण है जो इस प्रकार है।

पवित्र बाईबल

(उत्पत्ति ग्रन्थ पृष्ठ नं. 2 पर, अ. 1:20 - 2:5 पर)
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छटवां दिन:- प्राणी और मनुष्य:

अन्य प्राणियों की रचना करके



26. फिर परमेश्वर ने कहा, हम मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार अपनी समानता में बनाऐं, जो सर्व प्राणियों को काबू रखेगा।



27. तब परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया, अपने ही स्वरूप के अनुसार परमेश्वर ने उसको उत्पन्न किया, नर और नारी करके मनुष्यों की सृष्टी की।



29. प्रभु ने मनुष्यों के खाने के लिए जितने बीज वाले छोटे पेड़ तथा जितने पेड़ों में बीज वाले फल होते हैं वे भोजन के लिए प्रदान किए हैं, माँस खाना नहीं कहा है।



सातवां दिन:- विश्राम का दिन:



परमेश्वर ने छः दिन में सर्व सृष्टी की उत्पत्ति की तथा सातवें दिन विश्राम किया।



पवित्र बाईबल ने सिद्ध कर दिया कि परमात्मा मानव सदृश शरीर में है, जिसने छः दिन में सर्व सृष्टी की रचना की तथा फिर विश्राम किया।
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उत्पति विषय में लिखा है कि परमेश्वर ने मनुष्य को अपने स्वरूप के अनुसार उत्पन्न किया। इससे सिद्ध है कि प्रभु भी मनुष्य जैसे शरीर युक्त है तथा छः दिन में सृष्टी रचना करके सातवें दिन तख्त पर जा विराजा।

पवित्र बाइबिल अय्यूब 36: 5 के अनुसार पूर्ण परमात्मा

अय्यूब 36:5 (और्थोडौक्स यहूदी बाइबल - OJB)

परमेश्वर कबीर (शक्तिशाली) है, किन्तु वह लोगों से घृणा नहीं करता है।

परमेश्वर कबीर (सामर्थी) है और विवेकपूर्ण है।



बाइबल ने भी स्पष्ट किया है की प्रभु का नाम कबीर है।



अनुवाद कर्ताओ नें कबीर की जगह शक्तिशाली व सामर्थ वाला लिख दिया है। वास्तव में परमात्मा का नाम कबीर है। वेदो में, भगवद गीता में, श्री गुरु ग्रंथ साहिब में और कुरान शरीफ में भी परमात्मा का नाम कबीर है।





भगवान ने मनुष्य को शाकाहारी भोजन खाने के आदेश दिये हैं।



पवित्र बाइबल - उत्पत्ति

1:29 - फिर परमेश्वर ने उन से कहा, सुनो, जितने बीज वाले छोटे छोटे पेड़ सारी पृथ्वी के ऊपर हैं और जितने वृक्षों में बीज वाले फल होते हैं, वे सब मैं ने तुम को दिए हैं; वे तुम्हारे भोजन के लिये हैं:



1:30 - और जितने पृथ्वी के पशु, और आकाश के पक्षी, और पृथ्वी पर रेंगने वाले जन्तु हैं, जिन में जीवन के प्राण हैं, उन सब के खाने के लिये मैं ने सब हरे हरे छोटे पेड़ दिए हैं और वैसा ही हो गया।

परमेश्वर ने मांस खाने का आदेश किसी को भी नहीं दिया।



बाइबिल में प्रमाण है परमात्मा ने 6 दिन में सृष्टि रची सातवें दिन तखत पर जा विराजा लेकिन यह कौन परमात्मा है..? इसकी जानकारी न ईसाइयों को है ना अन्य किसी धर्म के लोगों को संत रामपाल जी महाराज जी ने सभी धर्म के धर्मिक ग्रंथों से प्रमाणित कर दिया कि कबीर परमेश्वर  पूर्ण परमात्मा है जिन्होंने 6 दिन में सृष्टि रची व 7 वे दिन तख्त पर जा विराजा।



अधिक जानकारी के लिए आप इन चैनलों पर सुन सकते हैं संत रामपाल जी महाराज के मंगल प्रवचन👇👇



साधना चैनल पर शाम को 7:30 से 8:30 बजे तक

असली राम कौन है

राम कौन है...?? रामचन्द्र भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचंद्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन ...