Wednesday, July 1, 2020

भक्ति करना क्यों आवश्यक है

मनुष्य जीवन प्राप्त होने के उपरांत भक्ति करना अति आवश्यक है। क्योकि?

 हम सभी जीवो को नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा है अर्थात उसी का स्वरूप है अन्य प्राणियों को यह सुंदर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर जीव को 84 लाख योनियों वाले चक्र में जाना पड़ता है।

Importance of bhakti
Importance of bhakti


 भक्ति करना क्यों ज़रूरी है?

 मोक्ष प्राप्त करने के लिए सच्ची भक्ति ज़रूरी है।

 भक्ति से आर्थिक मानसिक और शारीरिक सुख होता है। इसलिए भक्ति करना ज़रूरी है।

 सत भक्ति करने से अहंकार से दूर होकर मनुष्य नेक इंसान बन कर सुखी जीवन व्यतीत करता है।

 पूर्ण गुरु से नाम उपदेश लेकर मर्यादा में रहते हुए आजीवन सत भक्ति करने से ही सर्व सुख व पूर्ण मोक्ष मिलता है।

 भक्ति करने से आने वाली आपदाएं दूर होती हैं।

 भक्ति करने से हमारे अंदर आत्म संतोष आता है ।

Importance of bhakti
Importance of true worship

 संत गरीबदास जी महाराज बताते हैं

यह दम टूटै पिण्डा फूटै, हो लेखा दरगाह मांही।
उस दरगाह में मार पड़ैगी, जम पकड़ेंगे बांही।।


नर-नारायण देहि पाय कर, फेर चैरासी जांही।
उस दिन की मोहे डरनी लागे, लज्जा रह के नांही।।

जा सतगुरू की मैं बलिहारी, जो जामण मरण मिटाहीं।
कुल परिवार तेरा कुटम्ब कबीला, मसलित एक ठहराहीं।
बाँध पींजरी आगै धर लिया, मरघट कूँ ले जाहीं।।


अग्नि लगा दिया जब लम्बा, फूंक दिया उस ठाहीं।
पुराण उठा फिर पण्डित आए, पीछे गरूड पढाहीं।।


 भावार्थ:- यह दम अर्थात् श्वांस जिस दिन समाप्त हो जाऐंगे। उसी दिन यह शरीर रूपी पिण्ड छूट जाएगा। फिर परमात्मा के दरबार में पाप-पुण्यों का हिसाब होगा। भक्ति न करने वाले या शास्त्राविरूद्ध भक्ति करने वाले को यम के दूत भुजा पकड़कर ले जाऐंगे, चाहे कोई किसी देश का राजा भी क्यों न हो, उसकी पिटाई की जाएगी। सन्त गरीबदास को परमेश्वर कबीर जी मिले थे। उनकी आत्मा को ऊपर लेकर गए थे। सर्व ब्रह्माण्डों को दिखाकर सम्पूर्ण अध्यात्म ज्ञान समझाकर वापिस शरीर में छोड़ा था। सन्त गरीब दास जी आँखों देखा हाल बयान कर रहे हैं कि:- हे मानव! आपको नर शरीर मिला है जो नारायण अर्थात् परमात्मा के शरीर जैसा अर्थात् उसी का स्वरूप है। अन्य प्राणियों को यह सुन्दर शरीर नहीं मिला। इसके मिलने के पश्चात् प्राणी को आजीवन भगवान की भक्ति करनी चाहिए। ऐसा परमात्मा स्वरूप शरीर प्राप्त करके सत्य भक्ति न करने के कारण फिर चैरासी लाख वाले चक्र में जा रहा है, धिक्कार है तेरे मानव जीवन को! मुझे तो उस दिन की चिन्ता बनी है, डर लगता है कि कहीं भक्ति कम बने और उस परमात्मा के दरबार में पता नहीं इज्जत रहेगी या नहीं। मैं तो भक्ति करते-करते भी डरता हूँ कि कहीं भक्ति कम न रह जाए। आप तो भक्ति ही नहीं करते। यदि करते हो तो शास्त्राविरूद्ध कर रहे हो। तुम्हारा तो बुरा हाल होगा और मैं तो राय देता हूँ कि ऐसा सतगुरू चुनो जो जन्म-मरण के दीर्घ रोग को मिटा दे, समाप्त कर दे। जो सत्य भक्ति नहीं करते, उनका क्या हाल होता है मृत्यु के पश्चात्। आस-पास के कुल के लोग इकट्ठे हो जाते हैं। फिर सबकी एक ही मसलत अर्थात् राय बनती है कि इसको उठाओ। (उठाकर शमशान घाट पर ले जाकर फूँक देते हैं, लाठी या जैली की खोद (ठोकर) मार-मारकर छाती तोड़ते हैं। सम्पूर्ण शरीर को जला देते हैं। जो कुछ भी जेब में होता है, उसको निकाल लेते हैं। फिर शास्त्राविधि त्यागकर मनमाना आचरण कराने और करने वाले उस संसार से चले गए जीव के कल्याण के लिए गुरू गरूड पुराण का पाठ करते हैं।

Importance of bhakti
                       power of bhakti


 तत्वज्ञान (सूक्ष्मवेद) में कहा है कि अपना मानव जीवन पूरा करके वह जीव चला गया। परमात्मा के दरबार में उसका हिसाब होगा। वह कर्मानुसार कहीं गधा-कुत्ता बनने की पंक्ति में खड़ा होगा। मृत्यु के पश्चात् गरूड पुराण का पाठ उसके क्या काम आएगा। यह व्यर्थ का शास्त्राविरूद्ध क्रियाक्रम है। उस प्राणी का मनुष्य शरीर रहते उसको भगवान के संविधान का ज्ञान करना चाहिए था। जिससे उसको अच्छे-बुरे का ज्ञान होता और वह अपना मानव जीवन सफल करता।



जै सतगुरू की संगत करते, सकल कर्म कटि जाईं।
अमर पुरि पर आसन होते, जहाँ धूप न छाँइ।।

 सन्त गरीब दास ने परमेश्वर कबीर जी से प्राप्त सूक्ष्मवेद में आगे कहा है कि यदि सतगुरू (तत्वदर्शी सन्त) की शरण में जाकर दीक्षा लेते तो उपरोक्त सर्व कर्मों के कष्ट कट जाते अर्थात् न प्रेत बनते, न गधा, न बैल बनते। अमरपुरी पर आसन होता अर्थात् गीता अध्याय 18 श्लोक 62 तथा अध्याय 15 श्लोक 4 में वर्णित सनातन परम धाम प्राप्त होता, परम शान्ति प्राप्त हो जाती। फिर कभी लौटकर संसार में नहीं आते अर्थात् जन्म-मरण का कष्टदायक चक्र सदा के लिए समाप्त हो जाता। उस अमर लोक (सत्यलोक) में धूप-छाया नहीं है अर्थात् जैसे धूप दुःखदाई हुई तो छाया की आवश्यकता पड़ी। उस सत्यलोक में केवल सुख है, दुःख नहीं है।

importance of bhakti
the real aim of true worshipaim


 वर्तमान में पूर्ण संत सतगुरु रामपाल जी महाराज एकमात्र पूर्ण संत है जो शास्त्र अनुकूल सही साधना भक्ति बताकर मानव समाज का कल्याण कर रहे हैं उनके द्वारा बताई गई भक्ति मर्यादा में रहकर करने से इस लोक में तथा परलोक में सुख एवं पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है अधिक जानकारी के लिए अवश्य देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30pm तक

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