परमेश्वर कबीर जी का प्रकट होना...!!
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूत में कबीर परमेश्वर अपने निजी स्थान सब लोग से लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए। वहाँ से उन्हें नीरू नीमा नामक दंपति घर ले गए फिर घर पर 25 दिन तक कुछ नहीं खाया और एकदम स्वस्थ थे जैसे प्रतिदिन 1 किलो दूध पीते हो तो। 25 दिन की आयु में कबीर साहेब जी ने स्वयं बोल कर कहा कि मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं मेरे लिए एक कुंवारी गाय बछिया लाओं। तब कबीर जी के आदेशानुसार एक कंवारी गाय की बछिया लाइ गई तब कबीर साहिब जी ने दूध पिया।
परमेश्वर कबीर जी का नामकरण.!!
शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामकरण करने आए ब्राह्मणों, काजियों ने जब कुरान शरीफ को खोला तो कबीर नाम आया। तब पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व
अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्ला अर्थात् अल्लाहुअकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं। गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में कहा है "गरीब सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवान, झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।"
कबीर परमेश्वर सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनीँद्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कवीरदेव (कबीर प्रभु) नाम से आए हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे, उस समय के साधको और ऋषिमुनियों ने वास्तविक ज्ञान को स्वीकार नहीं किया तथा परमेश्वर कविर्देव जी को सतसुकृत के स्थान पर वामदेव कहने लगे थे।
त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए। त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।
कबीर परमेश्वर द्वापर युग में रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए तथा एक निसंतान वाल्मीकि दंपत्ति कालू तथा गोदावरी को मिले व अपना नाम करुणामय रखाया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि कबीर जी ही वह पूर्ण परमेश्वर है जो चारों युगों में आते हैं वह अनेकों प्रकार की लीलाएं करते हैं अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं और अपने तत्वज्ञान को कविताओं व लोकोक्तियों के माध्यम से भगत समाज तक पहुँचाते है।
कबीर परमेश्वर के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए देखें साधना चैनल रात्रि 7:40 से 8:30 pm
ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूत में कबीर परमेश्वर अपने निजी स्थान सब लोग से लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए। वहाँ से उन्हें नीरू नीमा नामक दंपति घर ले गए फिर घर पर 25 दिन तक कुछ नहीं खाया और एकदम स्वस्थ थे जैसे प्रतिदिन 1 किलो दूध पीते हो तो। 25 दिन की आयु में कबीर साहेब जी ने स्वयं बोल कर कहा कि मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं मेरे लिए एक कुंवारी गाय बछिया लाओं। तब कबीर जी के आदेशानुसार एक कंवारी गाय की बछिया लाइ गई तब कबीर साहिब जी ने दूध पिया।
परमेश्वर कबीर जी का नामकरण.!!
शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामकरण करने आए ब्राह्मणों, काजियों ने जब कुरान शरीफ को खोला तो कबीर नाम आया। तब पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व
अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्ला अर्थात् अल्लाहुअकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं। गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में कहा है "गरीब सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवान, झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।"
कबीर परमेश्वर सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनीँद्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कवीरदेव (कबीर प्रभु) नाम से आए हैं।
सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे, उस समय के साधको और ऋषिमुनियों ने वास्तविक ज्ञान को स्वीकार नहीं किया तथा परमेश्वर कविर्देव जी को सतसुकृत के स्थान पर वामदेव कहने लगे थे।
त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए। त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।
कबीर परमेश्वर द्वापर युग में रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए तथा एक निसंतान वाल्मीकि दंपत्ति कालू तथा गोदावरी को मिले व अपना नाम करुणामय रखाया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।
पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि कबीर जी ही वह पूर्ण परमेश्वर है जो चारों युगों में आते हैं वह अनेकों प्रकार की लीलाएं करते हैं अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं और अपने तत्वज्ञान को कविताओं व लोकोक्तियों के माध्यम से भगत समाज तक पहुँचाते है।
कबीर परमेश्वर के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए देखें साधना चैनल रात्रि 7:40 से 8:30 pm
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