आज हम बात करते हैं संत कबीर जी के बारे में...!!
कबीर जी को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। उनको 15वीं शताब्दी में महान संत तथा कवि के रूप में जाना जाता था। वह बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे परंतु उनको वेदों का पूर्ण ज्ञान था। उनका व्यक्तित्व तथा वेशभूषा बहुत ही साधारण थी तथा उन्होंने जातिवाद का पुऱजोर से खंडन किया। आज भी लोग कबीर जी को संत के रूप में ही देखते हैं ।
कबीर साहेब जी का जीवन परिचय...!!
कबीर जी के जन्म को लेकर भी समाज में कई धारणाएं व्याप्त हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने नीरू नीमा के घर जन्म लिया। अन्य का मत है कि नीरू नीमा को कबीर साहेब शिशु रूप में लहरतारा तालाब पर मिले जो कि बिलकुल सत्य है।
इसका वर्णन कबीर साहेब ने अपनी एक वाणी में नीरू को आकाशवाणी के माध्यम से स्पष्ट किया जब वह नीमा के साथ कबीर जी को घर ना ले जाने के लिए विरोध कर रहे थे जो इस प्रकार है:-
द्वापर युग में तुम बालमिक जाती,
भक्ति शिव की करि दिन राती।
तुमरा एक बालक प्यारा,
वह था परम शिष्य हमारा।
सुपच भक्त मम प्राण प्यारा,
उससे था एक वचन हमारा।
ता करण हम चल आए,
जल पर प्रकट हम नारायण कहाऐ।
लै चलो तुम घर अपने,
कोई अकाज होये नहीं सपने।
बाचा बन्ध जा कारण यहाँ आए,
काल कष्ट तुम्हरा मिट जाए।
इतना सुनि कर जुलहा घबराया,
कोई जिन्द या ओपरा पराया।
मोकूँ कोई शाप न लग जाए,
ले बालक को घर कूँ आए।
कबीर जी का जन्म सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास सुदी पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में काशी में हुआ। परंतु कबीर साहेब ने मां के गर्भ से जन्म नहीं लिया अपितु अपने निजधाम सतलोक से सशरीर आकर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।
गरीबदास जी की वाणी है :-
गरीब, अनंत कोटी ब्रह्मांड में बंदीछोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर है, जननी जन्या न माय।।
कबीर साहेब 600 वर्ष पूर्व शिशु रूप धर कर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था इसलिए कबीर साहेब का प्रकट दिवस मनाया जाता है जयंती नहीं।
कबीर साहिब चारों युगों में आते है।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।
परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्त्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं।
कबीर परमेश्वर सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनीँद्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कवीरदेव (कबीर प्रभु) नाम से आए हैं।
त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए। त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।
द्वापर युग में कबीर परमेश्वर काशी नगर में एक सुदर्शन नाम के वाल्मीकि को मिले और उन्हें सृष्टि रचना सुनाई। उस समय कबीर परमेश्वर की लीलामय आयु 12 वर्ष की थी पुण्यात्मा सुदर्शन को सत्यलोक के दर्शन करा कर उन्हें नाम उपदेश देकर उनका कल्याण किया।
कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
जिस कबीर जी को संत के रूप में जाना जाता है वह कबीर ही कबीर परमेश्वर है जो चारों युगों में अपने निजी स्थान सतलोक से चलकर आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं तथा अपना यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान स्वयं कविताओं व लोकोक्तियों के माध्यम से बताते हैं
वह कबीर परमेश्वर है कौन है, कहां रहता है, कैसे मिलता है इन सब की जानकारी वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज सभी धार्मिक ग्रंथों को खोल खोल कर बता रहे हैं अधिक जानकारी के लिए देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30 pm