Sunday, May 31, 2020

संत कबीर दास जी कौन थे..!



आज हम बात करते हैं संत कबीर जी के बारे में...!!

कबीर जी को लेकर कई दंत कथाएं प्रचलित हैं। उनको 15वीं शताब्दी में महान संत तथा कवि के रूप में जाना जाता था। वह बहुत पढ़े-लिखे नहीं थे परंतु उनको वेदों का पूर्ण ज्ञान था। उनका व्यक्तित्व तथा वेशभूषा बहुत ही साधारण थी तथा उन्होंने जातिवाद का पुऱजोर से खंडन किया। आज भी लोग कबीर जी को संत के रूप में ही देखते हैं ।



कबीर साहेब जी का जीवन परिचय...!!
कबीर जी के जन्म को लेकर भी समाज में कई धारणाएं व्याप्त हैं। कुछ लोगों का मानना है कि उन्होंने नीरू नीमा के घर जन्म लिया। अन्य का मत है कि नीरू नीमा को कबीर साहेब शिशु रूप में लहरतारा तालाब पर मिले जो कि बिलकुल सत्य है।
इसका वर्णन कबीर साहेब ने अपनी एक वाणी में नीरू को आकाशवाणी के माध्यम से स्पष्ट किया जब वह नीमा के साथ कबीर जी को घर ना ले जाने के लिए विरोध कर रहे थे जो इस प्रकार है:-

द्वापर युग में तुम बालमिक जाती,
भक्ति शिव की करि दिन राती।
तुमरा एक बालक प्यारा,
वह था परम शिष्य हमारा।
सुपच भक्त मम प्राण प्यारा,
उससे था एक वचन हमारा।
ता करण हम चल आए,
जल पर प्रकट हम नारायण कहाऐ।
लै चलो तुम घर अपने,
कोई अकाज होये नहीं सपने।
बाचा बन्ध जा कारण यहाँ आए,
काल कष्ट तुम्हरा मिट जाए।
इतना सुनि कर जुलहा घबराया,
कोई जिन्द या ओपरा पराया।
मोकूँ कोई शाप न लग जाए,
ले बालक को घर कूँ आए।



कबीर जी का जन्म सन् 1398 (विक्रमी संवत् 1455) ज्येष्ठ मास सुदी पूर्णमासी को ब्रह्ममूहूर्त (सूर्योदय से लगभग डेढ़ घण्टा पहले) में काशी में हुआ। परंतु कबीर साहेब ने मां के गर्भ से जन्म नहीं लिया अपितु अपने निजधाम सतलोक से सशरीर आकर बालक रूप बनाकर लहरतारा तालाब में कमल के फूल पर विराजमान हुए।
गरीबदास जी की वाणी है :-
गरीब, अनंत कोटी ब्रह्मांड में बंदीछोड़ कहाय।
सो तो एक कबीर है, जननी जन्या न माय।।
कबीर साहेब 600 वर्ष पूर्व शिशु रूप धर कर कमल के फूल पर प्रकट हुए थे उनका जन्म माता के गर्भ से नहीं हुआ था इसलिए कबीर साहेब का प्रकट दिवस मनाया जाता है जयंती नहीं।

 कबीर साहिब चारों युगों में आते है।

सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।


परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्त्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं। सतयुग में सतसुकृत नाम से, त्रेतायुग में मुनिन्द्र नाम से, द्वापर युग में करूणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कविर्देव (कबीर प्रभु) नाम से प्रकट हुए हैं।

कबीर परमेश्वर सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनीँद्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कवीरदेव (कबीर प्रभु) नाम से आए हैं।

त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए। त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।

द्वापर युग में कबीर परमेश्वर काशी नगर में एक सुदर्शन नाम के वाल्मीकि को मिले और उन्हें सृष्टि रचना सुनाई। उस समय कबीर परमेश्वर की लीलामय आयु 12 वर्ष की थी पुण्यात्मा सुदर्शन को सत्यलोक के दर्शन करा कर उन्हें नाम उपदेश देकर उनका कल्याण किया।

कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।
जिस कबीर जी को संत के रूप में जाना जाता है वह कबीर ही कबीर परमेश्वर है जो चारों युगों में अपने निजी स्थान सतलोक से चलकर आते हैं और अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं तथा अपना यथार्थ आध्यात्मिक ज्ञान स्वयं कविताओं व लोकोक्तियों के माध्यम से बताते हैं
वह कबीर परमेश्वर है कौन है, कहां रहता है, कैसे मिलता है इन सब की जानकारी वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज सभी धार्मिक ग्रंथों को खोल खोल कर बता रहे हैं अधिक जानकारी के लिए देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30 pm


Friday, May 29, 2020

कबीर परमेश्वर चारों युगों में आते हैं

परमेश्वर कबीर जी का प्रकट होना...!!

ज्येष्ठ मास की शुक्ल पूर्णमासी विक्रमी संवत् 1455 (सन् 1398) सोमवार को ब्रह्म मुहूत में कबीर परमेश्वर अपने निजी स्थान सब लोग से लहरतारा तालाब पर कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए। वहाँ से उन्हें नीरू नीमा नामक दंपति घर ले गए फिर घर पर 25 दिन तक कुछ नहीं खाया और एकदम स्वस्थ थे जैसे प्रतिदिन 1 किलो दूध पीते हो तो। 25 दिन की आयु में कबीर साहेब जी ने स्वयं बोल कर कहा कि मैं कुंवारी गाय का दूध पीता हूं मेरे लिए एक कुंवारी गाय बछिया लाओं। तब कबीर जी के आदेशानुसार एक कंवारी गाय की बछिया लाइ गई तब कबीर साहिब जी ने दूध पिया।



 परमेश्वर कबीर जी का नामकरण.!!
शिशु रूप कबीर परमेश्वर का नामकरण करने आए ब्राह्मणों, काजियों ने जब कुरान शरीफ को खोला तो कबीर नाम आया। तब पूरी कुरान का निरीक्षण किया तो उनके द्वारा लाई गई कुरान शरीफ में सर्व
अक्षर कबीर-कबीर-कबीर-कबीर हो गए काजी बोले इस बालक ने कोई जादू मन्त्र करके हमारी कुरान शरीफ को ही बदल डाला। तब कबीर परमेश्वर शिशु रूप में बोले हे काशी के काजियों। मैं कबीर अल्ला अर्थात् अल्लाहुअकबर, हूँ। मेरा नाम ‘‘कबीर’’ ही रखो।



 कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं। गरीब दास जी महाराज ने अपनी वाणी में कहा है "गरीब सतगुरु पुरुष कबीर है, चारों युग प्रवान, झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।"



कबीर परमेश्वर सतयुग में सत सुकृत नाम से, त्रेता में मुनीँद्र नाम से, द्वापर युग में करुणामय नाम से तथा कलयुग में वास्तविक कवीरदेव (कबीर प्रभु) नाम से आए हैं।

सतयुग में सतसुकृत नाम से कबीर परमेश्वर प्रकट हुए थे, उस समय के साधको और ऋषिमुनियों ने वास्तविक ज्ञान को स्वीकार नहीं किया तथा परमेश्वर कविर्देव जी को सतसुकृत के स्थान पर वामदेव कहने लगे थे।

त्रेता युग में कबीर परमेश्वर मुनींद्र ऋषि के नाम से आए तथा शिशु रूप धारण करके कमल के फूल पर प्रकट हुए। त्रेता युग में उनकी परवरिश की लीला निसंतान दंपत्ति वेदविज्ञ नामक ऋषि तथा सूर्या नामक उनकी साध्वी पत्नी ने की।



कबीर परमेश्वर द्वापर युग में रामनगर नामक नगरी में एक सरोवर में कमल के फूल पर शिशु रूप में प्रकट हुए तथा एक निसंतान वाल्मीकि दंपत्ति कालू तथा गोदावरी को मिले व अपना  नाम करुणामय रखाया।

कलयुग में कबीर परमेश्वर अपने वास्तविक नाम कबीर रूप में काशी नगरी में लहरतारा तालाब में कमल के पुष्प पर अवतरित हुए।
कलयुग में निसंतान दंपति नीरू और नीमा ने उनका पालन पोषण किया।

कबीर परमेश्वर चारों युगों में अपने सत्य ज्ञान का प्रचार करने आते हैं।
सतगुरु पुरुष कबीर हैं, चारों युग प्रवान।
झूठे गुरुवा मर गए, हो गए भूत मसान।।

पूर्ण परमात्मा कविर्देव (कबीर परमेश्वर) वेदों के ज्ञान से भी पूर्व सतलोक में विद्यमान थे तथा अपना वास्तविक ज्ञान (तत्वज्ञान) देने के लिए चारों युगों में भी स्वयं प्रकट हुए हैं।


वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ने बताया कि कबीर जी ही वह पूर्ण परमेश्वर है जो चारों युगों में आते हैं वह अनेकों प्रकार की लीलाएं करते हैं अपनी प्यारी आत्माओं को मिलते हैं और अपने तत्वज्ञान को कविताओं व लोकोक्तियों के माध्यम से भगत समाज तक पहुँचाते है।
कबीर परमेश्वर के बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करने के लिए देखें साधना चैनल रात्रि 7:40 से 8:30 pm

Wednesday, May 20, 2020

प्राकृतिक आपदाएं एवं चुनौतियां

आज हम बात कर रहे हैं अचानक आने वाले प्राकृतिक आपदाओं के बारे में...!!

आपदा का अर्थ है, अचानक होने वाली एक विध्वंसकारी घटना जिससे व्यापक भौतिक क्षति होती है, जान-माल का नुकसान होता है।


मानव द्वारा अनेक प्रकार के अस्वस्थ क्रियाकलापों के कारण पर्यावरण के तत्वों एवं प्रकृति के सुसंचालन में बाधा उत्पन्न की जा रही है, परिणामस्वरूप जीवन-चक्र की गुणवत्ता में अंतर आता जा रहा है। प्राकृतिक आपदा का सीधा संबंध, पर्यावरण से है। आपदा जो प्रकृति के कारण हो वह प्राकृतिक आपदा है। प्राकृतिक आपदा आज विश्वव्यापी है। भूकंप, बाढ़, हिस्खलन, दावानल, तड़ित, चक्रवात, सुनामी लहर, सूखा, हेल्सटॉर्म, लू, हरिकेन, टायफून, आइस एज, टोरनेडो, लैला, संक्रामक रोग (स्वाइन फ्लू, प्लेग, हैजा आदि) पर्यावरण असंतुलन आदि प्राकृतिक आपदा से संबंधित हैं।


आपदा चाहे प्राकृतिक हों या मानवजनित यह दोनों रूपों में घटित होकर मानव जीवन को प्रभावित करती हैं। आपदा का दुःखद परिणाम अन्ततः जन-धन व सम्पदा के नुकसान के रूप में हमारे सामने आता है।



धरती पर जीवन का आरम्भ और जीवन को चलाए रखने का काम प्रकृति की बड़ी पेचीदा प्रक्रिया है। इसे पूरी तरह समझ पाना अति कठिन है। फिर भी हजारों सालों में मनुष्य ने अनुभव और विज्ञान की मदद से इस गुत्थी को सुलझाने की कोशिश की है। जिसके महत्वपूर्ण निष्कर्ष ये हैं कि प्रकृति ने जो कुछ पैदा किया वह फिजूल नहीं है। हर जीव का अपना महत्व है। वनस्पति से लेकर जीवाणुओं, कीड़े-मकोड़ों और मानव तक की जीवन प्रक्रिया को चलाए रखने में अपना-अपना योगदान रहा है। किंतु इस सारी प्रक्रिया में संतुलन बना रहना चाहिए। कोई भी प्राणी सीमा से ज्यादा नहीं बढ़ना चाहिए।

पिछले कुछ दशकों में अनियोजित विकास के कारण पहाड़ों में भू-कटाव और भूस्खलन की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। अनियोजित विकास, प्राकृतिक संसाधनों के निर्मम दोहन व बढ़ते शहरीकरण की स्थिति ने यहाँ के पर्यावरणीय सन्तुलन को बिगाड़ दिया है। इसके चलते प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है। जनसंख्या का अधिक दबाव, जन-जागरूकता की कमी, पूर्व-सूचनाओं व संचार साधनों की समुचित व्यवस्था न होने जैसे कारणों से प्राकृतिक आपदाओं से जन-धन की हानि में व्यापक स्तर पर वृद्धि हो रही है।



असमय आने वाली प्रमुख आपदाएं...!!

जल एवं जलवायु से जुड़ी आपदाएं, चक्रवात, बवण्डर एवं तूफान, ओलावृष्टि, बादल फटना, लू व शीतलहर, हिमस्खलन, सूखा, समुद्ररक्षण, मेघगर्जन व बिजली का कड़कना;

भूमि संबंधी आपदाएं, भूस्खलन एवं कीचड़ का बहाव, भूकंप, बांध का टूटना, खदान में आग;

दुर्घटना संबंधी आपदाएं, जंगलों में आग लगना, शहरों में आग लगना, खदानों में पानी भरना, तेल का फैलाव, प्रमुख इमारतों का ढहना, एक साथ कई बम विस्फोट, बिजली से आग लगना, हवाई, सड़क एवं रेल दुर्घटनाएं,
जैविक आपदाएं, महामारियां, कीटों का हमला, पशुओं की महामारियां, जहरीला भोजन;

रासायनिक, औद्योगिक एवं परमाणु संबंधी आपदाएं, रासायनिक गैस का रिसाव, परमाणु बम गिरना।
इनके अतिरिक्त नागरिक संघर्ष, सांप्रदायिक एवं जातीय हिंसा, आदि भी आज प्रमुख आपदाएं हैं।

अगर समय रहते हम इन चुनौतियों को काबू में नहीं कर पाते हैं तो पूरी मानव-जाति के साथ-साथ पर्यावरण का अस्तित्व खतरे में पड़ जाएगा। अतः हमें समय रहते कारगर नीति बनानी होगी।


प्राकृतिक आपदा जैसी समस्याओं से निपटने के लिए हमे आध्यात्मिक की ओर बढ़ना होगा। आध्यात्मिक ज्ञान से हमें जानकारी होगी कि मनुष्य द्वारा अपने स्वाद के लिए निर्दोष जीवो की निर्मम हत्या करके उनको खाया जाता है जिससे वह पाप का भागी तो बनता ही हैं साथ ही प्रकृति संतुलन को भी नुकसान पहुंचाता हैं।

वही मानव द्वारा अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संसाधनों का निर्मम दोहन किया जा रहा है आध्यात्मिक ज्ञान से हम फिजूल आवश्यकताओं को सीमित रखकर व अपने सामाजिक जीवन को साधारण सिंपल बना कर प्रकृति को बचा सकते हैं

अधिक जानकारी के लिए देखिये साधना चैंनल रात्रि 7:30-8:30 pm

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Thursday, May 14, 2020

पर्यावरण में सुधार

देश में पर्यावरण की स्थिति और चुनौतियाँ..!!

पर्यावरण शब्द परि+आवरण के संयोग से बना है। 'परि' का आशय चारों ओर तथा 'आवरण' का आशय परिवेश है। दूसरे शब्दों में कहें तो पर्यावरण अर्थात वनस्पतियों ,प्राणियों,और मानव जाति सहित सभी सजीवों और उनके साथ संबंधित भौतिक परिसर को पर्यावरण कहतें हैं वास्तव में पर्यावरण में वायु ,जल ,भूमि ,पेड़-पौधे , जीव-जन्तु ,मानव और उसकी विविध गतिविधियों के परिणाम आदि सभी का समावेश होता हैं।

                  कारखानों द्वारा धुएँ का उत्सर्जन

भारत में पर्यावरण की कई समस्या है। वायु प्रदूषण, जल प्रदूषण, कचरा, और प्राकृतिक पर्यावरण के प्रदूषण भारत के लिए चुनौतियाँ हैं। पर्यावरण की समस्या की परिस्थिति 1947 से 1995 तक बहुत ही खराब थी। 1995 से 2010 के बीच विश्व बैंक के विशेषज्ञों के अध्ययन के अनुसार, अपने पर्यावरण के मुद्दों को संबोधित करने और अपने पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार लाने में भारत दुनिया में सबसे तेजी से प्रगति कर रहा है। फिर भी, भारत विकसित अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों के स्तर तक आने में इसी तरह के पर्यावरण की गुणवत्ता तक पहुँचने के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है।
भारत के लिए एक बड़ी चुनौती और अवसर है। पर्यावरण की समस्या का, बीमारी, स्वास्थ्य के मुद्दों और भारत के लिए लंबे समय तक आजीविका पर प्रभाव का मुख्य कारण हैं।

तेजी से बढ़ती हुई जनसंख्या व आर्थिक विकास और शहरीकरण व औद्योगीकरण में अनियंत्रित वृद्धि, बड़े पैमाने पर औद्योगीक विस्तार तथा तीव्रीकरण, तथा जंगलों का नष्ट होना इत्यादि भारत में पर्यावरण संबंधी समस्याओं के प्रमुख कारण हैं।

प्रमुख पर्यावरणीय मुद्दों में वन और कृषि-भूमिक्षरण, संसाधन रिक्तीकरण (पानी, खनिज, वन, रेत, पत्थर आदि), पर्यावरण क्षरण, सार्वजनिक स्वास्थ्य, जैव विविधता में कमी, पारिस्थितिकी प्रणालियों में लचीलेपन की कमी, गरीबों के लिए आजीविका सुरक्षा शामिल हैं


पर्यावरण के सामने खड़ी बड़ी चुनौतियां..!!

वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन आबोहवा और समुद्री जल कार्बन से भर चुका है.
जंगलों की कटाई कई प्रकार के पौधों और जन्तुओं को आसरा देने वाले जंगल काटे जा रहे हैं।
लुप्त होती प्रजातियां 
मिट्टी का क्षरण
अति आबादी 
वायु प्रदूषण और जलवायु परिवर्तन 
जंगलों की कटाई
लुप्त होती प्रजातियां


आज पर्यावरण एक जरूरी सवाल ही नहीं बल्कि ज्वलंत मुद्दा बना हुआ है लेकिन आज लोगों में इसे लेकर कोई जागरूकता नहीं है। ग्रामीण समाज को छोड़ दें तो भी महानगरीय जीवन में इसके प्रति खास उत्सुकता नहीं पाई जाती। परिणामस्वरूप पर्यावरण सुरक्षा महज एक सरकारी एजेण्डा ही बन कर रह गया है। जबकि यह पूरे समाज से बहुत ही घनिष्ठ सम्बन्ध रखने वाला सवाल है। जब तक इसके प्रति लोगों में एक स्वाभाविक लगाव पैदा नहीं होता, पर्यावरण संरक्षण एक दूर का सपना ही बना रहेगा।





पर्यावरण का सीधा सम्बन्ध प्रकृति से है। अपने परिवेश में हम तरह-तरह के जीव-जन्तु, पेड़-पौधे तथा अन्य सजीव-निर्जीव वस्तुएँ पाते हैं। ये सब मिलकर पर्यावरण की रचना करते हैं। विज्ञान की विभिन्न शाखाओं जैसे-भौतिक विज्ञान, रसायन विज्ञान तथा जीव विज्ञान, आदि में विषय के मौलिक सिद्धान्तों तथा उनसे सम्बन्ध प्रायोगिक विषयों का अध्ययन किया जाता है। परन्तु आज की आवश्यकता यह है कि पर्यावरण के विस्तृत अध्ययन के साथ-साथ इससे सम्बन्धित व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया जाए। आधुनिक समाज को पर्यावरण से सम्बन्धित समस्याओं की शिक्षा व्यापक स्तर पर दी जानी चाहिए। साथ ही इससे निपटने के बचावकारी उपायों की जानकारी भी आवश्यक है। 


आज के मशीनी युग में हम ऐसी स्थिति से गुजर रहे हैं। प्रदूषण एक अभिशाप के रूप में सम्पूर्ण पर्यावरण को नष्ट करने के लिए हमारे सामने खड़ा है। सम्पूर्ण विश्व एक गम्भीर चुनौती के दौर से गुजर रहा है। यद्यपि हमारे पास पर्यावरण सम्बन्धी पाठ्य-सामग्री की कमी है तथापि सन्दर्भ सामग्री की कमी नहीं है। वास्तव में आज पर्यावरण से सम्बद्ध उपलब्ध ज्ञान को व्यावहारिक बनाने की आवश्यकता है ताकि समस्या को जनमानस सहज रूप से समझ सके। ऐसी विषम परिस्थिति में समाज को उसके कर्त्तव्य तथा दायित्व का एहसास होना आवश्यक है। 




आज वायु प्रदूषण ने भी हमारे पर्यावरण को बहुत हानि पहुंचाई है। जल प्रदूषण के साथ ही वायु प्रदूषण भी मानव के सम्मुख एक चुनौती है। माना कि आज मानव विकास के मार्ग पर अग्रसर है परंतु वहीं बड़े-बड़े कल-कारखानों की चिमनियों से लगातार उठने वाला धुआं, रेल व नाना प्रकार के डीजल व पेट्रोल से चलने वाले वाहनों के पाइपों से और इंजनों से निकलने वाली गैसें तथा धुआं, जलाने वाला हाइकोक, ए.सी., इन्वर्टर, जेनरेटर आदि से कार्बन डाइऑक्साइड, नाइट्रोजन, सल्फ्यूरिक एसिड, नाइट्रिक एसिड प्रति क्षण वायुमंडल में घुलते रहते हैं। वस्तुतः वायु प्रदूषण सर्वव्यापक हो चुका है।

सही मायनों में पर्यावरण पर हमारा भविष्य आधारित है, जिसकी बेहतरी के लिए ध्वनि प्रदूषण को और भी ध्यान देना होगा। अब हाल यह है कि महानगरों में ही नहीं बल्कि गाँवों तक में लोग ध्वनि विस्तारकों का प्रयोग करने लगे हैं। बच्चे के जन्म की खुशी, शादी-पार्टी सभी में डी.जे. एक आवश्यकता समझी जाने लगी है। जहां गाँवों को विकसित करके नगरों से जोड़ा गया है। वहीं मोटर साइकिल व वाहनों की चिल्ल-पों महानगरों के शोर को भी मुँह चिढ़ाती नजर आती है। औद्योगिक संस्थानों की मशीनों के कोलाहल ने ध्वनि प्रदूषण को जन्म दिया है। इससे मानव की श्रवण-शक्ति का ह्रास होता है। ध्वनि प्रदूषण का मस्तिष्क पर भी घातक प्रभाव पड़ता है।

जल प्रदूषण, वायु प्रदूषण और ध्वनि तीनों ही हमारे व हमारे फूल जैसे बच्चों के स्वास्थ्य को चौपट कर रहे हैं। ऋतुचक्र का परिवर्तन, कार्बन डाईऑक्साइड की मात्रा का बढ़ता हिमखंड को पिघला रहा है। सुनामी, बाढ़, सूखा, अतिवृष्टि या अनावृष्टि जैसे दुष्परिणाम सामने आ रहे हैं, जिन्हें देखते हुए अपने बेहतर कल के लिए ‘5 जून’ को समस्त विश्व में ‘पर्यावरण दिवस’ के रूप में मनाया जा रहा है।


उपर्युक्त सभी प्रकार के प्रदूषण से बचने के लिए यदि थोड़ा सा भी उचित दिशा में प्रयास करें तो बचा सकते हैं।


सर्वप्रथम हमें आध्यात्मिक और बढ़ना होगा आध्यात्मिक से हमें ज्ञान होगा की आजीविका के लिए हमें अधिक संसाधनों की आवश्यकता नही होगी अगर हम अपना जीवन सिंपल-साधारण तरीके से व्यापन करेंगे व अपनी जीवन शैली में किसी प्रकार का दिखावा आडंबर व फिजूलखर्ची डीजे , साउंड आदि का प्रयोग ना करें तो। वातावरण को किसी प्रकार का नुकसान नहीं होगा।
आध्यात्मिक ज्ञान से ही मानव विचारों में शुद्धता आएगी..!

 वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज अपने आध्यात्मिक ज्ञान से व उनके द्वारा बताई गई सतभक्ति से मानव के विचारों में आध्यात्मिक परिवर्तन के साथ ही किसी भी प्रकार का पाखंड, आडंबर व दिखावा नही करने की सलाह देते हैं...!!



 जिसमें वातावरण शुद्धताके साथ-साथ सामाजिक परिवर्तन भी किए जा रहे हैं अधिक जानकारी के लिए देखें साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30 pm






Wednesday, May 13, 2020

सत भक्ति न मिलने के कारण लोगों का नास्तिक होना स्वाभाविक है

आइये जानते हैं नास्तिक होने का क्या कारण है....??


अगर “ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास” की दृष्टि से देखा जाये तो दुनिया में दो प्रकार के लोग होते है – एक आस्तिक, दूसरा नास्तिक । आस्तिक उसे कहते है जो ईश्वर के अस्तित्व को मानता है । इसके विपरीत नास्तिक उसे कहते है जो ईश्वर के अस्तित्व को नहीं मानता ।

  जिन लोगो को सही भक्ति मार्ग प्राप्त नही हुआ, गलत साधना करने से दुःख दूर नही हुए वे लोग भगवान से दूर होते चले गए। और नास्तिक बन गए। नास्तिक लोग ईश्वर (भगवान) के अस्तित्व का स्पष्ट प्रमाण न होने के कारण झूठ करार देते हैं। अधिकांश नास्तिक लोग किसी भी देवी देवता, परालौकिक शक्ति, धर्म और आत्मा को नहीं मानते। ओर न ही वेदों को मान्यता देते। नास्तिक मानने के स्थान पर जानने पर विश्वास करते हैं।
वहीं आस्तिक किसी न किसी ईश्वर की धारणा को अपने संप्रदाय, जाति, कुल या मत के अनुसार बिना किसी प्रमाणिकता के स्वीकार करता है। जबकि नास्तिक लोग इसे अंधविश्वास कहते है..!!


क्या ईश्वर का अस्तित्व है ?

सभी धर्मों के धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जानते हैं कि ईश्वर का अस्तित्व है या नहीं...!!


आइये जानते है हमारे सद्ग्रन्थ क्या कहते है?

गीता में प्रमाण - गीता अध्याय 8 श्लोक 9 में पूर्ण परमात्मा का नाम कविम् बताया है।
कुरान में प्रमाण - कुरान शरीफ सूरत फुर्कानि 25 आयत 52, 58, 59 में परमात्मा काम कबीर/ खबीरा/ कबीरन है।
गुरूग्रंथसाहिब में प्रमाण - गुरूग्रंथसाहिब साहिब राग तिलंग महला 1 पृष्ठ 721 - हक्का कबीर करीम तू बैएब परवरदिगार,
राग सिरी महला 1 पृष्ठ 24 - धाणक रूप रहा करतार
बाइबिल में प्रमाण - अय्यूब 36: 5 (और्थोडौक्स यहूदी बाइबल - OJB) (परमेश्वर कबीर शक्तिशाली है)
वेद में प्रमाण- वेदों में में कई जगह परमेश्वर कबीर साहेब के प्रमाण है। ऋग्वेद मण्डल 9 सूक्त 96 मन्त्र 17, 18, 19, 20
ऋग्वेद मण्डल 10 सूक्त 90 मन्त्र 3, 4, 5, 15, 16
यजुर्वेद अध्याय 19 मन्त्र 26, 30
यजुर्वेद अध्याय 29 मन्त्र 25
सामवेद संख्या 359 अध्याय 4 खण्ड 25 श्लोक 8
सामवेद संख्या 1400 अध्याय 12 खण्ड 3 श्लोक 5
अथर्वेद कांड 4 अनुवाक 1 मन्त्र 1 से 7

जिन सन्तो को परमात्मा मिले -
गरीब दास जी : -
अनंत कोटि ब्रह्मण्ड का, एक रति नहीं भार।
सतगुरू पुरूष कबीर हैं, ये कुल के सृजनहार।।
हम सुल्तानी नानक तारे, दादू को उपदेश दिया।
जात जुलाहा भेद न पाया, काशी माही कबीर हुआ।।
सतगुरु पुरुष कबीर है चारों युग प्रमाण
झूठे गुरुवा मर गए हो गए भूत मसाण।।
नानक देव जी : -
खालक आदम सिरजिआ,आलम बड़ा कबीर।
क़ाइम दाइम कुदरती, सिर पीरा दे पीर।।
संत रविदास जी : -
साहेब कबीर शमर्थ हैं, आदि अंत सर्वकाल।
ज्ञान गम्या से दे दिया, कहे रैदास दयाल।।
संत नाभा दास जी : -
वाणी अरबों खरबों ,ग्रंथ कोटी हजार।
करता पुरुष कबीर है, रहे नाभे विचार।।
संत गोरख नाथ जी : -
नौ नाथ चौरासी सिद्धा, इनका अंधा ज्ञान।
अविचल ज्ञान कबीर का, यो गति बिरला जान।।
दादू जी : -
जिन मोकू निज नाम दिया, सोई सतगुरू हमार।।
दादू दूसरा कोई नहीं, वो कबीर सृजनहार।।
और संत सब कूप है केते झरिता नीर।
दादू अगम अपार है दरिया सत्य कबीर।।
स्वामी रामानंद जी : -
तुम स्वामी मैं बालक बुद्धि, धर्म-कर्म किए नाश।
कहे रामानंद विज ब्रह्म तुम, हमरा दृढ़ विश्वास।।
बोलत रामानंद जी, सुनो कबीर करतार।
गरीबदास सब रूप में, तुम ही बोलनहार।।
संत धर्मदास जी : -
बाजा बाजा रहित का, परा नगर में जोर।
सतगुरु खसम कबीर हैं, नजर न आवे और।।

 सही भगवान की जानकारी और सत्य साधना नहीं मिलने के कारण लोग नासिक होते चले गए...! शास्त्र अनुकूल सही साधन नहीं मिलने के कारण लोगों की मानसिकता हो गई की भगवान है ही नहीं...!!  सर्व ब्रह्मांड पशु, पक्षी, जीव जंतु अपने आप ही बनता और बिगड़ता है जीव अपने आप ही उत्पन्न होता है और नष्ट हो जाता है भगवान है ही नहीं..!!
लोगों को लगता है कि सब कुछ भ्रमणा है इसी नकारात्मक मानसिकता के आधार पर लोग अपना अनमोल मनुष्य जीवन बर्बाद कर देते हैं


 परंतु अब यह समझना होगा कि जिस प्रक्रिया द्वारा हम भगवान को खोज रहे थे वह प्रक्रिया ही गलत थी यह नहीं कि भगवान है ही नहीं..!
 जबकि परमात्मा है उसकी शास्त्र अनुकूल साधना भक्ति करने से पूर्ण मोक्ष की प्राप्ति होती है अन्य मनमानी साधना करने से नहीं। सही गुरु व सत मार्ग का अभाव जीव के दुखों का कारण बनता है पूर्णगुरु की जानकारी प्राप्त करने के लिए देखिए साधना चैनल रात्रि 7:30 से 8:30 pm
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Thursday, May 7, 2020

मांस खाना अल्लाह का आदेश नहीं है

अल्लाह के जीवो को मार कर खाने से अल्लाह कभी खुश नहीं होता।

हमारे देश में कई धर्मों को मानने वाले लोग रहते है। जिसमे सभी की अपनी अलग अलग मान्यता है उन्ही में से एक धर्म मुस्लिम धर्म है जिसकी अपनी अलग मान्यता है ।

उनका मानना है कि बकरे को हलाल करके उनका मांस खाने से जन्नत की प्राप्ति होती है, जबकि उनका ऐसा मानना सरासर गलत है क्योंकि मांस खाना राक्षसों का काम है इंसानों का नहीं।


मांस खाने का आदेश अल्लाह का नहीं है नहीं कुरान शरीफ में इसके खाने का जिक्र अल्लाह ने स्वयं किया है ना ही अन्य किसी धार्मिक गर्न्थो में मांस खाने को कहा गया है मांस खाने को कहे वह परमात्मा का ज्ञान हो ही नहीं सकता। ऐसा तो केवल कोई शैतान ही करवाता है
मुसलमानों की सबसे पवित्र पुस्तक कुरान है जिससे पूरा मुस्लिम समाज मानता है महत्वपूर्ण बात यह है कि अल्लाह ने इस में मांस खाने का कहीं कोई आदेश नहीं दिया। जिब्राइल फरिश्ते का आदेश था जिसने मुस्लिम भाई अल्लाह का फरमान मान बैठे और पाप के गर्त में डूब गए।
परमेश्वर कबीर जी कहते है कि जो हत्या करते हैं, मांस खाते हैं वह अपराधी आत्मा मृत्यु के पश्चात् नरक में जाएंगे, साथ ही माता पिता भी नरक में जाएंगे।


मारी गऊ शब्द  के तीरं ऐसे होते मुहम्मद पीरं

मुहम्मद जी ने वचन से गाय मारी और वचन से ही जीवित कर दी थी। मुहम्मद जी जैसी भक्ति कोई मुसलमान नहीं कर सकता। मुहम्मद जी ने जब वचन की सिद्धि से मरी गाय जीवित की तो लोगों ने इसे पर्व का रूप दे दिया। गरीबदास जी महाराज जी अपनी वाणी में हज़रत मुहम्मद जी के बारे में बताते हैं

दूधु दही घृत अंब्रित देती। निरमल जा की काइआ।
गोबरि जा के धरती सूची। सा तै आणी गाइआ।।

मुसलमान गाय भखी, हिन्दु खाया सूअर ।
गरीबदास दोनों दीन से, राम रहिमा दूर।।



रोजा बंग नमाज दई रे , बिस्मिल की नहीं बात कही रे

मोहम्मद जी का केवल इतना ही आदेश था।उन्होंने गाय कभी बिस्मिल नहीं की।
हज़रत मुहम्मद जी ने कभी मांस नहीं खाया, न खाने का आदेश दिया। इन क़ाज़ी, मुल्लाओं ने, फरिश्तों ने डरा धमकाकर कर किसी के शरीर में प्रवेश करके ये सब गलत अफवाएं फैलाई। हज़रत मुहम्मद जी ने तो अपनी सिद्धि से एक मरी हुई गाय जीवित की थी ना कि मांस खाया।


पूरे दिन भूखे प्यासे रहकर पांच वक्त की नमाज पढ़ते हैं अल्लाह से अपने गुनाहों की माफी मांगते हैं और शाम को पेट भरने और जीभ के स्वाद के लिए निर्दोष जानवरों को हलाल करके उन्हें पका कर खाते हो सुबह अल्लाह से माफी शाम को पाप करते हैं ।

कबीर, तिलभर मछली खायके, कोटि गऊ दे दान। काशी करौंत ले मरे, तो भी नरक निदान।।

कबीर, गला काटि कलमा भरे, कीया कहै हलाल। साहब लेखा मांगसी, तब होसी कौन हवाल।।

नासमझ इंसान अल्लाह को खुश करना चाहता है मुल्ला काजियों की बातों में आकर
निर्दोष जीवो की हत्या करके उनका पाप अपने ऊपर लेकर मुस्लिम भाई अल्लाह से वंचित होता जा रहा हैं



त्योहार, व्रत आदि के नाम पर बेजुबान जीवो की हत्या करके उनका मांस खाना कहां तक सही है रहम कीजिए उन बेजुबानो पर जो बोल नहीं सकते वह भी हम सब की तरह खुदा के बनाए हुए जीव है फर्क सिर्फ केवल इतना है वह जानवर है और हम इंसान हैं बदला कहीं न जात है तीन लोक के माही। हमें इस बात को समझना होगा।

परमात्मा के विधान अनुसार आज आप जिसे काट रहे हैं मौका पड़ने पर वह भी आपके साथ ऐसा ही करेगा!



मांस सेवन नहीं करके ,अल्लाह की सही इबादत करें
कुरान शरीफ सूरत फुरकान 25 आयत 52-59 में कहा है जिसने 6 दिन में सृष्टि रची फिर सातवें दिन तख्त पर जा विराज वह अल्लाह बड़ा रहमान हैं वह अल्लाह कबीर है उसकी खबर किसी बाखबर यानि तत्वदर्शी संत से पूछो
वर्तमान में संत रामपाल जी महाराज ही अल्लाह के पूर्ण जानकार है  जिन की शरण में जाकर आप अल्लाह की इबादत की सही जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

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पवित्र कुरान शरीफ में प्रभु सशरीर है तथा उसका नाम कबीर है

मुसलमान धर्म के पवित्र शास्त्र  प्रमाणित करते हैं कि सर्व सृष्टी रचनहार सर्व पाप विनाशक, सर्व शक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में आकार में है तथा सत्यलोक में रहता है। उसका नाम अल्लाह कबीर है।

पवित्र कुरान शरीफ में प्रमाण इस प्रकार है..!!


पवित्र कुरान प्रमाणित करती है अल्लाह कबीर साहेब ही हैं।
सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत 52
कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए अडिग रहना।

आयत 52:- फला तुतिअल् - काफिरन् व जहिद्हुम बिही जिहादन् कबीरा (कबीरन्)।।52।

इसका भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी का खुदा (प्रभु) कह रहा है कि हे पैगम्बर ! आप काफिरों (जो एक प्रभु की भक्ति त्याग कर अन्य देवी-देवताओं तथा मूर्ति आदि की पूजा करते हैं) का कहा मत मानना, क्योंकि वे लोग कबीर को पूर्ण परमात्मा नहीं मानते। आप मेरे द्वारा दिए इस कुरान के ज्ञान के आधार पर अटल रहना कि कबीर ही पूर्ण प्रभु है तथा कबीर अल्लाह के लिए संघर्ष करना (लड़ना नहीं) अर्थात् अडिग रहना।


पवित्र कुरान में लिखा है कबीर अल्लाह ही पूजा के योग्य हैं। 
वह सर्व पापों को विनाश करने वाले हैं। उनकी पवित्र महिमा का गुणगान करो - सुरत-फुर्कानि 25:58

आयत 58:- व तवक्कल् अलल् - हरिूल्लजी ला यमूतु व सब्बिह् बिहम्दिही व कफा बिही बिजुनूबि अिबादिही खबीरा (कबीरा)।।58।

भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद जी जिसे अपना प्रभु मानते हैं वह अल्लाह (प्रभु) किसी और पूर्ण प्रभु की तरफ संकेत कर रहा है कि ऐ पैगम्बर उस कबीर परमात्मा पर विश्वास रख जो तुझे जिंदा महात्मा के रूप में आकर मिला था। वह कभी मरने वाला नहीं है अर्थात् वास्तव में अविनाशी है। तारीफ के साथ उसकी पाकी (पवित्र महिमा) का गुणगान किए जा, वह कबीर अल्लाह (कविर्देव) पूजा के योग्य है तथा अपने उपासकों के सर्व पापों को विनाश करने वाला है।


हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भी विद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो(बैठ) गया। सुरत-फुर्कानि नं. 25 आयत 59

आयत 59:- अल्ल्जी खलकस्समावाति वल्अर्ज व मा बैनहुमा फी सित्तति अय्यामिन् सुम्मस्तवा अलल्अर्शि अर्रह्मानु फस्अल् बिही खबीरन्(कबीरन्)।।59।।

भावार्थ है कि हजरत मुहम्मद को कुरान शरीफ बोलने वाला प्रभु (अल्लाह) कह रहा है कि वह कबीर प्रभु वही है जिसने जमीन तथा आसमान के बीच में जो भीविद्यमान है सर्व सृष्टी की रचना छः दिन में की तथा सातवें दिन ऊपर अपने सत्यलोक में सिंहासन पर विराजमान हो (बैठ) गया। उसके विषय में जानकारी किसी (बाखबर) तत्वदर्शी संत से पूछो
उस पूर्ण परमात्मा की प्राप्ति कैसे होगी तथा वास्तविक ज्ञान तो किसी तत्वदर्शी संत (बाखबर) से पूछो, मैं नहीं जानता।
 वर्तमान में सच्चा बाखबर संत जगत गुरु संत रामपाल जी महाराज जी है जो सभी धर्म के धार्मिक ग्रंथों का ज्ञान दे रहे है।


उपरोक्त पवित्र कुरान शरीफ ने प्रमाणित कर दिया कि सर्व सृष्टी रचनहार, सर्व पाप विनाशक, सर्व शक्तिमान, अविनाशी परमात्मा मानव सदृश शरीर में, आकार में है तथा सत्यलोक में रहता है। उसका नाम कबीर है, उसी को अल्लाहु अकबिरू भी कहते हैं। अधिक जानकारी के लिए क्लिक करें…👇👇👇




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राम कौन है...?? रामचन्द्र भगवान विष्णु के सातवें अवतार हैं, और इन्हें श्रीराम और श्रीरामचंद्र के नामों से भी जाना जाता है। रामायण में वर्णन ...